तुम मिरी वहशतों के साथी थे
कोई आसान था तुम्हें खोना?
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उसे भूलने का सितम कर रहे हैं
खुल कर आख़िर जहल का एलान होना चाहिए
हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं
बीते ख़्वाब की आदी आँखें कौन उन्हें समझाए
रात से एक सोच में गुम हूँ
ऐन मुमकिन है उसे मुझ से मोहब्बत ही न हो
तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है
ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा
भली क्यूँ लगे हम को ख़ुशियों की दस्तक
शनासाई का सिलसिला देखती हूँ
लड़खड़ाना नहीं मुझे फिर भी
दे रहे हैं लोग मेरे दिल पे दस्तक बार बार