हिज्र Poetry (page 23)

शबाब-ए-होश कि फ़िल-जुमला यादगार हुई

फ़ानी बदायुनी

नहीं मंज़ूर तप-ए-हिज्र का रुस्वा होना

फ़ानी बदायुनी

मर कर मरीज़-ए-ग़म की वो हालत नहीं रही

फ़ानी बदायुनी

दिल की हर लर्ज़िश-ए-मुज़्तर पे नज़र रखते हैं

फ़ानी बदायुनी

अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़

फ़ानी बदायुनी

अब उन्हें अपनी अदाओं से हिजाब आता है

फ़ानी बदायुनी

आह अब तक तो बे-असर न हुई

फ़ानी बदायुनी

मुझ को दुनिया के हर इक ग़म से छुड़ा रक्खा है

फ़ना बुलंदशहरी

घर से तुम्हारी दी हुई चीज़ें निकाल दें

फख़्र अब्बास

याद

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

नुसख़ा-ए-उल्फ़त मेरा

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मरसिए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जो मेरा तुम्हारा रिश्ता है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दो इश्क़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ऐ रौशनियों के शहर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शैख़ साहब से रस्म-ओ-राह न की

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सभी कुछ है तेरा दिया हुआ सभी राहतें सभी कुल्फ़तें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कब याद में तेरा साथ नहीं कब हात में तेरा हात नहीं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बात बस से निकल चली है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

क्यूँ आसमान-ए-हिज्र के तारे चले गए

फ़ैसल फेहमी

मेघ दूत

फ़हमीदा रियाज़

एक मेहमाँ का हिज्र तारी है

फ़हमी बदायूनी

धूप सा यू कपूल नारी है

फ़ाएज़ देहलवी

ऐ जान शब-ए-हिज्राँ तिरी सख़्त बड़ी है

फ़ाएज़ देहलवी

किसी के शिकवा-हा-ए-जौर से वाक़िफ़ ज़बाँ क्यूँ हो

एजाज़ वारसी

साए में आबलों की जलन और बढ़ गई

एजाज़ रहमानी

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