प्रेम Poetry (page 4)

इस अदा से इश्क़ का आग़ाज़ होना चाहिए

ज़ेब बरैलवी

नग़्मा के सोज़ से अयाँ दिल का गुदाज़ हो गया

ज़हीर अहमद ताज

मिरे दिल को मोहब्बत ख़ूब गरमाए तो अच्छा हो

ज़हीर अहमद ताज

अब तो ये भी होने लगा है हम में उन में बात नहीं

ज़ाहिदुल हक़

कभी इश्क़ साज़-ए-हयात था कभी सोज़-ए-दिल ने जला दिया

ज़ाहिदा ज़ैदी

हमीं से अंजुमन-ए-इश्क़ मो'तबर ठहरी

ज़ाहिदा ज़ैदी

सिवा है हद से अब एहसास की गिरानी भी

ज़ाहिदा ज़ैदी

बू-ए-गुल रक़्स में है बाद-ए-ख़िज़ाँ रक़्स में है

ज़ाहिदा ज़ैदी

मैं किनारों को रुलाने लगा हूँ

ज़ाहिद शम्सी

वो आफ़्ताब में है और न माहताब में है

ज़ाहिद चौधरी

नहीं ये रस्म-ए-मोहब्बत कि इश्तिबाह करो

ज़ाहिद चौधरी

मेरा वजूद उस को गवारा नहीं रहा

ज़ाहिद चौधरी

जब आशिक़ी में मेरा कोई राज़-दाँ नहीं

ज़ाहिद चौधरी

गो मुब्तला-ए-गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर हूँ मैं

ज़ाहिद चौधरी

चला हूँ घर से मैं अहवाल-ए-दिल सुनाने को

ज़ाहिद चौधरी

चल दिया वो उस तरह मुझ को परेशाँ छोड़ कर

ज़ाहिद चौधरी

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

हम ने अपने इश्क़ की ख़ातिर ज़ंजीरें भी देखीं हैं

ज़हीर काश्मीरी

हमारे इश्क़ से दर्द-ए-जहाँ इबारत है

ज़हीर काश्मीरी

ये कारोबार-ए-चमन इस ने जब सँभाला है

ज़हीर काश्मीरी

तलब आसूदगी की अर्सा-ए-दुनिया में रखते हैं

ज़हीर काश्मीरी

मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ

ज़हीर काश्मीरी

मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था

ज़हीर काश्मीरी

मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था

ज़हीर काश्मीरी

लौह-ए-मज़ार देख के जी दंग रह गया

ज़हीर काश्मीरी

कुछ बस न चला जज़्बा-ए-ख़ुद-काम के आगे

ज़हीर काश्मीरी

किस को मिली तस्कीन-ए-साहिल किस ने सर मंजधार किया

ज़हीर काश्मीरी

हमराह लुत्फ़-ए-चश्म-ए-गुरेज़ाँ भी आएगी

ज़हीर काश्मीरी

दिल मर चुका है अब न मसीहा बना करो

ज़हीर काश्मीरी

अब इश्क़ से लौ लगाएँगे हम

ज़हीर काश्मीरी

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