जान Poetry (page 6)

पहचाने तू हर-दम वही हर आन वही है

वलीउल्लाह मुहिब

मोहब्बत से तरीक़-ए-दोस्ती से चाह से माँगो

वलीउल्लाह मुहिब

मिलती है उसे गौहर-ए-शब-ताब की मीरास

वलीउल्लाह मुहिब

मय-ए-गुल-गूँ के जो शीशे में परी रहती है

वलीउल्लाह मुहिब

हमारी चाह साहब जानते हैं

वलीउल्लाह मुहिब

है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं

वलीउल्लाह मुहिब

ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है

वलीउल्लाह मुहिब

दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें

वलीउल्लाह मुहिब

देखता कुछ हूँ ध्यान में कुछ है

वलीउल्लाह मुहिब

ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं

वलीउल्लाह मुहिब

आना है तो आ जाओ यक आन मिरा साहब

वलीउल्लाह मुहिब

न शोख़ियों से करे हैं वो चश्म-ए-गुल-गूँ रक़्स

वली उज़लत

अरे उल्टे ज़माने मुझ पे क्या सीधा सितम लाया

वली उज़लत

ऐ नूर-ए-जान-ओ-दीदा तिरे इंतिज़ार में

वली मोहम्मद वली

छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में

वली मोहम्मद वली

आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है

वाली आसी

यूँ तो तन्हाई में घबराए बहुत

वकील अख़्तर

सुन रक्खो उसे दिल का लगाना नहीं अच्छा

वाजिद अली शाह अख़्तर

लजयाई से नाज़ुक है ऐ जान बदन तेरा

वाजिद अली शाह अख़्तर

जा बैठते हो ग़ैरों में ग़ैरत नहीं आती

वाजिद अली शाह अख़्तर

ना-मुरादी ही लिखी थी सो वो पूरी हो गई

वजद चुगताई

ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे

वाहिद प्रेमी

सफ़ा मर्वा

वहीद क़ुरैशी

इक दश्त-ए-बे-अमाँ का सफ़र है चले-चलो

वहीद अख़्तर

मावरा

वहीद अख़्तर

आगही की दुआ

वहीद अख़्तर

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