जान Poetry (page 5)

पड़ गई दिल में तिरे तशरीफ़ फ़रमाने में धूम

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

बहस तो अपनी ही नहीं

यहया अमजद

शर्बत का घूँट जान के पीता हूँ ख़ून-ए-दिल

यगाना चंगेज़ी

उन की रफ़्तार से दिल का अजब अहवाल हुआ

वज़ीर अली सबा लखनवी

तुम हर इक रंग में ऐ यार नज़र आते हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

आप अपनी बेवफ़ाई देखिए

वज़ीर अली सबा लखनवी

तुम जो आते हो

वज़ीर आग़ा

सारी उम्र गँवा दी हम ने

वज़ीर आग़ा

सफ़र

वज़ीर आग़ा

उड़ी जो गर्द तो इस ख़ाक-दाँ को पहचाना

वज़ीर आग़ा

क़दम यूँ बे-ख़तर हो कर न मय-ख़ाने में रख देना

वासिफ़ देहलवी

आज रुख़्सत हो गया दुनिया से इक बीमार-ए-ग़म

वासिफ़ देहलवी

क़दम यूँ बे-ख़तर हो कर न मय-ख़ाने में रख देना

वासिफ़ देहलवी

फूल अपने वस्फ़ सुनते हैं उस ख़ुश-नसीब से

वसीम ख़ैराबादी

भर दीं शबाब ने ये उन आँखों में शोख़ियाँ

वसीम ख़ैराबादी

वो दिन गए कि मोहब्बत थी जान की बाज़ी

वसीम बरेलवी

मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला

वसीम बरेलवी

भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे

वसीम बरेलवी

सलीक़ा बोलने का हो तो बोलो

वक़ार मानवी

जान नहीं पहचान नहीं है

वक़ार मानवी

वो मेरा यार है पर मेरी मानता नहीं है

वक़ार ख़ान

देख पगली न दल लगा मिरे साथ

वक़ार ख़ान

बे-मिस्ल-ओ-बे-हिसाब उजालों के बा'द भी

वक़ार ख़ान

कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

चश्म-ए-तर है सहाब है क्या है

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

मौसम को भी 'वक़ार' बदल जाना चाहिए

वक़ार फ़ातमी

सफ़र-ए-ना-तमाम

वामिक़ जौनपुरी

सुर्ख़ दामन में शफ़क़ के कोई तारा तो नहीं

वामिक़ जौनपुरी

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