क़दम यूँ बे-ख़तर हो कर न मय-ख़ाने में रख देना
बहुत मुश्किल है जान ओ दिल को नज़राने में रख देना
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हम-सफ़र थम तो सही दिल को सँभालूँ तो चलूँ
कितनी घटाएँ आईं बरस कर गुज़र गईं
ये तूफ़ान-ए-हवादिस और तलातुम बाद ओ बाराँ के
हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते
आज रुख़्सत हो गया दुनिया से इक बीमार-ए-ग़म
हल्की सी ख़लिश दिल में निगाहों में उदासी
नसीम-ए-सुब्ह यूँ ले कर तिरा पैग़ाम आती है
बहुत अच्छा हुआ आँसू न निकले मेरी आँखों से
वफ़ूर-ए-बे-ख़ुदी में रख दिया सर उन के क़दमों पर
नहीं मालूम कितने हो चुके हैं इम्तिहाँ अब तक