जान Poetry (page 7)

कहीं शुनवाई नहीं हुस्न की महफ़िल के ख़िलाफ़

वहीद अख़्तर

इक दश्त-ए-बे-अमाँ का सफ़र है चले-चलो

वहीद अख़्तर

जाने कितना जीवन पीछे छूट गया अनजाने में

विश्वनाथ दर्द

तख़्त-ए-ताऊस मिरा तख़्त-ए-हज़ारा तुम हो

विश्मा ख़ान विश्मा

मेरा वहम-ओ-गुमान रहने दे

विशाल खुल्लर

इस से पहले कि ये आज़ार गवारा कर लें

विपुल कुमार

हमीं ने हश्र उठा रक्खा है बिछड़ने पर

विपुल कुमार

जल्द आएँ जिन्हें सीने से लगाना है मुझे

विपुल कुमार

हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले

विपुल कुमार

दिलों पे दर्द का इम्कान भी ज़ियादा नहीं

विपुल कुमार

मोहब्बत के आदाब सीखो ज़रा

विकास शर्मा राज़

अब कहाँ दर्द जिस्म-ओ-जान में है

विजय शर्मा अर्श

तुम

वर्षा गोरछिया

बना कर ख़ुद को जिस ने इक भला इंसान रक्खा है

वली मदनी

इश्क़ के हाथों में परचम के सिवा कुछ भी नहीं

उरूज ज़ैदी बदायूनी

निफ़ाक़

उरूज क़ादरी

हुस्न से आँख लड़ी हो जैसे

उनवान चिश्ती

नाज़ कर नाज़ कि ये नाज़ जुदा है सब से

उम्मीद फ़ाज़ली

हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था

उमर अंसारी

हर बार ही मैं जान से जाने में रह गया

उमैर मंज़र

इल्म ओ फ़न के राज़-ए-सर-बस्ता को वा करता हुआ

उमैर मंज़र

हर बार ही मैं जान से जाने में रह गया

उमैर मंज़र

ताइर-ए-ख़ुश-रंग को बे-बाल-ओ-पर देखेगा कौन

तुफ़ैल अहमद मदनी

कितनी दिलकश हैं ये बारिश की फुवारें लेकिन

त्रिपुरारि

इस तरह रस्म मोहब्बत की अदा होती है

त्रिपुरारि

छब्बीस जनवरी

तिलोकचंद महरूम

किसी की याद को हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं

तिलोकचंद महरूम

मरते मरते रौशनी का ख़्वाब तो पूरा हुआ

तौसीफ़ तबस्सुम

परी उड़ जाएगी और राजधानी ख़त्म होगी

तौक़ीर तक़ी

सदियों लहू से दिल की हिकायत लिखी गई

तसनीम फ़ारूक़ी

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