कितनी दिलकश हैं ये बारिश की फुवारें लेकिन
ऐसी बारिश में मिरी जान भी जा सकती है
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तजरबा जो भी है मेरा मैं वही लिखता हूँ
कई लाशें हैं मुझ में दफ़्न या'नी
अश्क-दर-अश्क वही लोग रवाँ मिलते हैं
मैं ख़ुद अपना लहू पीने लगा हूँ
रूह है तर्जुमा पानियों का अगर
इस तरह रस्म मोहब्बत की अदा होती है
न जाने क्या कमी थी चाहतों में
जब से गुज़रा है किसी हुस्न के बाज़ार से दिल
पुरानी चोट मैं कैसे दिखाऊँ
एक किरदार नया रोज़ जिया करता हूँ
तुम जिसे चाँद कहते हो वो अस्ल में
नींद आए तो कुछ सुराग़ मिले