मैं अपने दरमियाँ से हट चुका हूँ
तो फिर क्या दरमियाँ रक्खा हुआ है
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कितनी दिलकश हैं ये बारिश की फुवारें लेकिन
भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है
कभी किसी ने जो दिल दुखाया तो दिल को समझा गई उदासी
कई लाशें हैं मुझ में दफ़्न या'नी
न जाने क्या कमी थी चाहतों में
जाने फिर उस के दिल में क्या बात आ गई थी
शेर पढ़ते हुए ये तुम ने कभी सोचा है
एक तस्वीर बनाई है ख़यालों ने अभी
ज़िंदगानी का कोई बाब समझ लो लड़की
मैं तिरे जिस्म के जब पार निकल जाऊँगा
जब से गुज़रा है किसी हुस्न के बाज़ार से दिल