मैं तिरे जिस्म के जब पार निकल जाऊँगा
वस्ल की रात बड़ी ग़ौर-तलब होगी वो
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(539) Peoples Rate This
क़त्ल करना है नए ख़्वाब का सो डरता हूँ
प्यास ऐसी थी कि मैं सारा समुंदर पी गया
इस तरह रस्म मोहब्बत की अदा होती है
मोहब्बत में शिकायत कर रहा हूँ
कई लाशें हैं मुझ में दफ़्न या'नी
जिन से मिलना न हुआ उन से बिछड़ कर रोए
उस ने ख़ुद फ़ोन पे ये मुझ से कहा अच्छा था
वो तो मिल कर भी नहीं मिलती है
पुरानी चोट मैं कैसे दिखाऊँ
शेर पढ़ते हुए ये तुम ने कभी सोचा है