क़त्ल करना है नए ख़्वाब का सो डरता हूँ
काँप जाएँ न मिरे हाथ ये ख़ूँ करते हुए
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ये बारिश कब रुकेगी कौन जाने
न जाने क्या कमी थी चाहतों में
कितनी दिलकश हैं ये बारिश की फुवारें लेकिन
वो तो मिल कर भी नहीं मिलती है
तुम मिरे पास न आओ कि यही बेहतर है
मोहब्बत में शिकायत कर रहा हूँ
जब से गुज़रा है किसी हुस्न के बाज़ार से दिल
मैं हासिल हो चुका हूँ जिस बदन को
किसी पर भी यक़ीं कर लेते हो तुम
प्यास ऐसी थी कि मैं सारा समुंदर पी गया
भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है
कभी किसी ने जो दिल दुखाया तो दिल को समझा गई उदासी