तुम मिरे पास न आओ कि यही बेहतर है
पास आने से तो पहचान भी जा सकती है
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मैं हासिल हो चुका हूँ जिस बदन को
कई लाशें हैं मुझ में दफ़्न या'नी
ये बारिश कब रुकेगी कौन जाने
कभी किसी ने जो दिल दुखाया तो दिल को समझा गई उदासी
वो तो मिल कर भी नहीं मिलती है
शेर पढ़ते हुए ये तुम ने कभी सोचा है
कितनी दिलकश हैं ये बारिश की फुवारें लेकिन
मैं तिरे जिस्म के जब पार निकल जाऊँगा
जिन से मिलना न हुआ उन से बिछड़ कर रोए
जाने फिर उस के दिल में क्या बात आ गई थी
मैं अपने दरमियाँ से हट चुका हूँ