तुम जिसे चाँद कहते हो वो अस्ल में
आसमाँ के बदन पर कोई घाव है
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Javed Akhtar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(649) Peoples Rate This
अश्क-दर-अश्क वही लोग रवाँ मिलते हैं
मोहब्बत में शिकायत कर रहा हूँ
किसी पर भी यक़ीं कर लेते हो तुम
एक किरदार नया रोज़ जिया करता हूँ
मैं हासिल हो चुका हूँ जिस बदन को
कभी किसी ने जो दिल दुखाया तो दिल को समझा गई उदासी
तुम मिरे पास न आओ कि यही बेहतर है
ज़िंदगानी का कोई बाब समझ लो लड़की
प्यास ऐसी थी कि मैं सारा समुंदर पी गया
ये बारिश कब रुकेगी कौन जाने
नींद आए तो कुछ सुराग़ मिले