शेर पढ़ते हुए ये तुम ने कभी सोचा है
शेर कहते हुए मैं कितनी दफ़ा मरता हूँ
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वो तो मिल कर भी नहीं मिलती है
मैं तिरे जिस्म के जब पार निकल जाऊँगा
किसी पर भी यक़ीं कर लेते हो तुम
जब से गुज़रा है किसी हुस्न के बाज़ार से दिल
ये बारिश कब रुकेगी कौन जाने
रूह है तर्जुमा पानियों का अगर
मैं अपने दरमियाँ से हट चुका हूँ
एक किरदार नया रोज़ जिया करता हूँ
मोहब्बत में शिकायत कर रहा हूँ
भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है
अश्क-दर-अश्क वही लोग रवाँ मिलते हैं