रूह है तर्जुमा पानियों का अगर
जिस्म या'नी समुंदर में इक नाव है
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अश्क-दर-अश्क वही लोग रवाँ मिलते हैं
पुरानी चोट मैं कैसे दिखाऊँ
उस ने ख़ुद फ़ोन पे ये मुझ से कहा अच्छा था
वो तो मिल कर भी नहीं मिलती है
न जाने क्या कमी थी चाहतों में
मोहब्बत में शिकायत कर रहा हूँ
भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है
तजरबा जो भी है मेरा मैं वही लिखता हूँ
इस तरह रस्म मोहब्बत की अदा होती है
जिसे तुम ढूँडती रहती हो मुझ में
नींद आए तो कुछ सुराग़ मिले
ज़िंदगानी का कोई बाब समझ लो लड़की