मैं हासिल हो चुका हूँ जिस बदन को
उसी से पूछता हूँ क्या मिला है
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कई लाशें हैं मुझ में दफ़्न या'नी
अश्क-दर-अश्क वही लोग रवाँ मिलते हैं
नींद आए तो कुछ सुराग़ मिले
ज़िंदगानी का कोई बाब समझ लो लड़की
एक तस्वीर बनाई है ख़यालों ने अभी
भाड़े का इक मकाँ हूँ मुझ को ख़बर नहीं है
पुरानी चोट मैं कैसे दिखाऊँ
मैं तिरे जिस्म के जब पार निकल जाऊँगा
जिन से मिलना न हुआ उन से बिछड़ कर रोए
मोहब्बत में शिकायत कर रहा हूँ
मैं अपने दरमियाँ से हट चुका हूँ
न जाने क्या कमी थी चाहतों में