एक तस्वीर बनाई है ख़यालों ने अभी
और तस्वीर से इक शख़्स निकल आया है
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मैं अपने दरमियाँ से हट चुका हूँ
ज़िंदगानी का कोई बाब समझ लो लड़की
जब से गुज़रा है किसी हुस्न के बाज़ार से दिल
शेर पढ़ते हुए ये तुम ने कभी सोचा है
जिसे तुम ढूँडती रहती हो मुझ में
न जाने क्या कमी थी चाहतों में
ये बारिश कब रुकेगी कौन जाने
जाने फिर उस के दिल में क्या बात आ गई थी
क़त्ल करना है नए ख़्वाब का सो डरता हूँ
ऐ हवा तू ही उसे ईद-मुबारक कहियो
जिन से मिलना न हुआ उन से बिछड़ कर रोए
एक किरदार नया रोज़ जिया करता हूँ