ऐ हवा तू ही उसे ईद-मुबारक कहियो
और कहियो कि कोई याद किया करता है
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मैं अपने दरमियाँ से हट चुका हूँ
नींद आए तो कुछ सुराग़ मिले
तुम जिसे चाँद कहते हो वो अस्ल में
एक किरदार नया रोज़ जिया करता हूँ
कई लाशें हैं मुझ में दफ़्न या'नी
प्यास ऐसी थी कि मैं सारा समुंदर पी गया
मैं ख़ुद अपना लहू पीने लगा हूँ
वो तो मिल कर भी नहीं मिलती है
जिसे तुम ढूँडती रहती हो मुझ में
उस ने ख़ुद फ़ोन पे ये मुझ से कहा अच्छा था
जिन से मिलना न हुआ उन से बिछड़ कर रोए