कई लाशें हैं मुझ में दफ़्न या'नी
मैं क़ब्रिस्तान हूँ शुरूआत ही से
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क़त्ल करना है नए ख़्वाब का सो डरता हूँ
मोहब्बत में शिकायत कर रहा हूँ
किसी पर भी यक़ीं कर लेते हो तुम
तजरबा जो भी है मेरा मैं वही लिखता हूँ
शेर पढ़ते हुए ये तुम ने कभी सोचा है
मैं हासिल हो चुका हूँ जिस बदन को
जिन से मिलना न हुआ उन से बिछड़ कर रोए
मैं अपने दरमियाँ से हट चुका हूँ
एक किरदार नया रोज़ जिया करता हूँ
तुम मिरे पास न आओ कि यही बेहतर है