जिन से मिलना न हुआ उन से बिछड़ कर रोए
हम तो आँखों की हर इक हद से गुज़र कर रोए
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
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तुम मिरे पास न आओ कि यही बेहतर है
तुम जिसे चाँद कहते हो वो अस्ल में
जिसे तुम ढूँडती रहती हो मुझ में
तजरबा जो भी है मेरा मैं वही लिखता हूँ
कई लाशें हैं मुझ में दफ़्न या'नी
न जाने क्या कमी थी चाहतों में
मैं हासिल हो चुका हूँ जिस बदन को
नींद आए तो कुछ सुराग़ मिले
प्यास ऐसी थी कि मैं सारा समुंदर पी गया
मैं तिरे जिस्म के जब पार निकल जाऊँगा
मैं ख़ुद अपना लहू पीने लगा हूँ
पुरानी चोट मैं कैसे दिखाऊँ