जफ़ा Poetry (page 3)

शिकवा गर कीजे तो होता है गुमाँ तक़्सीर का

सय्यद हामिद

मुस्कुराने से मुद्दआ' क्या है

सय्यद हामिद

आई नहीं क्या क़ैद है गुलशन में सबा भी

सय्यद हामिद

वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब

सय्यद अाग़ा अली महर

कुछ और गुमरही-ए-दिल का राज़ क्या होगा

सूफ़ी तबस्सुम

हुस्न मजबूर-ए-जफ़ा है शायद

सूफ़ी तबस्सुम

हर ज़र्रा उभर के कह रहा है

सूफ़ी तबस्सुम

कौन कहता है जफ़ा करते हो तुम

सिराज औरंगाबादी

ग़म-ए-आहिस्ता-रौ याँ रफ़्ता रफ़्ता

सिराज औरंगाबादी

ऐ दोस्त तलत्तुफ़ सीं मिरे हाल कूँ आ देख

सिराज औरंगाबादी

कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है

सिरज़ अालम ज़ख़मी

अबस है दूरी का उस के शिकवा बग़ल में अपने वो दिल-रुबा है

श्याम सुंदर लाल बर्क़

खा के तेग़-ए-निगह-ए-यार दिल-ए-ज़ार गिरा

शऊर बलगिरामी

शुक्र को शिकवा-ए-जफ़ा समझे

शोला अलीगढ़ी

शब-ए-फ़िराक़ जो दिल में ख़याल-ए-यार रहा

शेर सिंह नाज़ देहलवी

सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे

ज़ौक़

नीमचा यार ने जिस वक़्त बग़ल में मारा

ज़ौक़

मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे

ज़ौक़

चश्म-ए-क़ातिल हमें क्यूँकर न भला याद रहे

ज़ौक़

बुतो ये शीशा-ए-दिल तोड़ दो ख़ुदा के लिए

शैख़ अली बख़्श बीमार

इस क़दर ख़ुद पे हम जफ़ा न करें

शहज़ाद रज़ा लम्स

मैं वस्ल में भी 'शेफ़्ता' हसरत-तलब रहा

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

गह हम से ख़फ़ा वो हैं गहे उन से ख़फ़ा हम

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए

शाज़ तमकनत

हाथ उठाता हूँ मैं अब दुआ के लिए

शौक़ सालकी

तुम्हें हुस्न ने पुर-जफ़ा कर दिया

शौक़ देहलवी मक्की

महव-ए-नग़्मा मिरा क़ातिल जो रहा करता है

शौक़ बहराइची

इक जफ़ा-जू से मोहब्बत हो गई

शौक़ बहराइची

ऐ हम-सफ़ीर तलख़ी-ए-तर्ज़-ए-बयाँ न छोड़

शौक़ बहराइची

हम तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का गिला भी नहीं करते

शम्स ज़ुबैरी

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