जफ़ा Poetry (page 14)

सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले

आनंद नारायण मुल्ला

मिरी बात का जो यक़ीं नहीं मुझे आज़मा के भी देख ले

आनंद नारायण मुल्ला

जब दिल में ज़रा भी आस न हो इज़्हार-ए-तमन्ना कौन करे

आनंद नारायण मुल्ला

जो पूछते हैं कि ये इश्क़-ओ-आशिक़ी क्या है

अमजद नजमी

शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए

अमीरुल्लाह तस्लीम

लौटे कुछ इस तरह तिरी जल्वा-सरा से हम

आमिर उस्मानी

न हों ख़्वाहिशें न गिला कोई न जफ़ा कोई

अमीता परसुराम 'मीता'

न तो ख़ौफ़ रोज़-ए-जज़ा का हो वही इश्क़ है

अमीता परसुराम 'मीता'

जब पढ़ा जौर ओ जफ़ा मैं ने तो आई ये सदा

अमीरुल इस्लाम हाशमी

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो

अमीर मीनाई

कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद

अमीर मीनाई

जो मय-कदे से भी दामन बचा बचा के चले

अमीन राहत चुग़ताई

बानी-ए-जौर-ओ-जफ़ा हैं सितम-ईजाद हैं सब

अमानत लखनवी

हक़ वफ़ा के जो हम जताने लगे

अल्ताफ़ हुसैन हाली

ग़म-ए-फ़ुर्क़त ही में मरना हो तो दुश्वार नहीं

अल्ताफ़ हुसैन हाली

रूह-ए-अर्ज़ी आदम का इस्तिक़बाल करती है

अल्लामा इक़बाल

असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद

अल्लामा इक़बाल

होली

अली जव्वाद ज़ैदी

मोहब्बत क्या मोहब्बत का सिला क्या

अलीम अख़्तर

दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए

अलीम अख़्तर

पड़ गई जैसे अक़्ल पर मिट्टी

अकमल इमाम

वो कम-नसीब जो अहद-ए-जफ़ा में रहते हैं

अख़्तर ज़ियाई

अहद-ए-वफ़ा का क़र्ज़ अदा कर दिया गया

अख़्तर ज़ियाई

ऐ इश्क़ कहीं ले चल

अख़्तर शीरानी

वफ़ा करो जफ़ा मिले भला करो बुरा मिले

अख़तर मुस्लिमी

किस को कहते हैं जफ़ा क्या है वफ़ा याद नहीं

अख़तर मुस्लिमी

दिल में इक जज़्बा-ए-बेदाद-ओ-जफ़ा ही होगा

अख़्तर होशियारपुरी

किसी से लड़ाएँ नज़र और झेलें मोहब्बत के ग़म इतनी फ़ुर्सत कहाँ

अख़्तर अंसारी

चर्ख़ की सई-ए-जफ़ा कोशिश नाकारा है

अख़्तर अंसारी

चर्ख़ भी छू लें तो जाना है इसी मिट्टी में

अख़लाक़ बन्दवी

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