न हों ख़्वाहिशें न गिला कोई न जफ़ा कोई
न सवाल अहद-ए-वफ़ा का हो वही इश्क़ है
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न तो ख़ौफ़ रोज़-ए-जज़ा का हो वही इश्क़ है
रक़ीब-ए-जाँ नज़र का नूर हो जाए तो क्या कीजे
हज़ारों मंज़िलें फिर भी मिरी मंज़िल है तू ही तू
तुझी से गुफ़्तुगू हर दम तिरी ही जुस्तुजू हर दम
ज़िंदगी अपना सफ़र तय तो करेगी लेकिन
बन गए दिल के फ़साने क्या क्या
कोई तदबीर न तक़दीर से लेना-देना
वफ़ा की शान वो लेकिन कभी मिरे न हुए
हम ने हज़ार फ़ासले जी कर तमाम शब
कम्बख़्त दिल ने इश्क़ को वहशत बना दिया