कुछ तो एहसास-ए-मोहब्बत से हुईं नम आँखें
कुछ तिरी याद के बादल भी भिगो जाते हैं
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वफ़ा की शान वो लेकिन कभी मिरे न हुए
कम्बख़्त दिल ने इश्क़ को वहशत बना दिया
तुझी से गुफ़्तुगू हर दम तिरी ही जुस्तुजू हर दम
हम ने हज़ार फ़ासले जी कर तमाम शब
न तो ख़ौफ़ रोज़-ए-जज़ा का हो वही इश्क़ है
सुब्ह-ए-रौशन को अंधेरों से भरी शाम न दे
न हों ख़्वाहिशें न गिला कोई न जफ़ा कोई
ज़िंदगी अपना सफ़र तय तो करेगी लेकिन
दो किनारों को मिलाया था फ़क़त लहरों ने
कौन था मेरे अलावा उस का