जफ़ा Poetry (page 5)

उन को है ए'तिदाल मुझे इंतिहा पसंद

सत्यपाल जाँबाज़

जो दूर से हमें अक्सर ख़ुदा सा लगता है

सत्य नन्द जावा

बातों से सितमगर मुझे बहलाता रहा वो

सरवर मजाज़

वक़्त के हाथों हिकायात-ए-अना भूल गए

सरवर आलम राज़

वुसअ'त-ए-बहर-ए-इश्क़ क्या कहिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

रहता है कब इक रविश पर आसमाँ

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

कुछ बद-गुमानियाँ हैं कुछ बद-ज़बानियाँ हैं

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

जीना मरना दोनों मुहाल

सरस्वती सरन कैफ़

कहाँ तक जफ़ा हुस्न वालों की सहते

साक़िब लखनवी

ग़श भी आया मिरी पुर्सिश को क़ज़ा भी आई

साक़िब लखनवी

हम झुकाते भी कहाँ सर को क़ज़ा से पहले

सलमा शाहीन

मेरी ग़ज़ल में एक नया सोज़-ए-जाँ भी है

सलीम अहमद

इश्क़ और नंग-ए-आरज़ू से आर

सलीम अहमद

वो तेरी इनायत की सज़ा याद है अब तक

सज्जाद बाक़र रिज़वी

मिरे सफ़र की हदें ख़त्म अब कहाँ होंगी

सज्जाद बाक़र रिज़वी

जज़्बा-ए-इश्क़ भी है गर्मी-ए-बाज़ार भी है

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

कोई मक़ाम नहीं हद्द-ए-ए'तिबार के बा'द

सैफ़ बिजनोरी

अहल-ए-दिल और भी हैं

साहिर लुधियानवी

अहल-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं

साहिर लुधियानवी

दिल को यकसूई ने दी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ की सलाह

साहिर देहल्वी

वफ़ा तो कैसी जफ़ा भी नहीं है अब हम पर

साहिर भोपाली

अजब तरह से मैं सर्फ़-ए-मलाल होने लगा

सहर अंसारी

राहज़न आदमी रहनुमा आदमी

साग़र सिद्दीक़ी

कुछ तो वफ़ा का रंग हो दस्त-ए-जफ़ा के साथ

साग़र मेहदी

तालिब-ए-दीद पे आँच आए ये मंज़ूर नहीं

सफ़ी लखनवी

रश्क-ए-महताब जहाँ-ताब था हर क़र्या-ए-जाँ

सादिक़ नसीम

शिकवे की चुभन मुझ को सदा अच्छी लगी है

सदफ़ जाफ़री

तुम ने रस्म-ए-जफ़ा उठा दी है

सबा अकबराबादी

मिले ग़ैरों से मुझ को रंज ओ ग़म यूँ भी है और यूँ भी

साइल देहलवी

ज़िद हमारी दुआ से होती है

रियाज़ ख़ैराबादी

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