जफ़ा Poetry (page 7)

सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो

इम्दाद इमाम असर

रोते हैं सुन के कहानी मेरी

इम्दाद इमाम असर

अपने दर से जो उठाते हैं हमें

इम्दाद इमाम असर

ये क्या कहा मुझे ओ बद-ज़बाँ बहुत अच्छा

इमदाद अली बहर

वस्ल में ज़िक्र ग़ैर का न करो

इमदाद अली बहर

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

हम-ज़ाद है ग़म अपना शादाँ किसे कहते हैं

इमदाद अली बहर

फ़ुर्क़त की आफ़त बुरे दिन काटना साल है

इमदाद अली बहर

बद-तालई का इलाज क्या हो

इमदाद अली बहर

ग़ैरों से दाद-ए-जौर-ओ-जफ़ा ली गई तो क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मक़्तल के इस सुकूत पे हैरत है क्या कहें

इफ़्तिख़ार आज़मी

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

देखे हैं जो ग़म दिल से भुलाए नहीं जाते

होश तिर्मिज़ी

साए चमक रहे थे सियासत की बात थी

हिमायत अली शाएर

हम इस शहर-ए-जफ़ा-पेशा से कुछ उम्मीद क्या रक्खें

हिजाब अब्बासी

मैं अक्सर सोचती हूँ ज़िंदगी को कौन लिक्खेगा

हिजाब अब्बासी

न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए

हातिम अली मेहर

करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम

हातिम अली मेहर

जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा

हातिम अली मेहर

वाक़िफ़ हैं ख़ूब आप के तर्ज़-ए-जफ़ा से हम

हसरत मोहानी

है वहाँ शान-ए-तग़ाफ़ुल को जफ़ा से भी गुरेज़

हसरत मोहानी

ऐसे बिगड़े कि फिर जफ़ा भी न की

हसरत मोहानी

यूँ तो आशिक़ तिरा ज़माना हुआ

हसरत मोहानी

उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी

हसरत मोहानी

तुझ से गरवीदा यक ज़माना रहा

हसरत मोहानी

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए

हसरत मोहानी

रविश-ए-हुस्न-ए-मुराआत चली जाती है

हसरत मोहानी

क़वी दिल शादमाँ दिल पारसा दिल

हसरत मोहानी

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं

हसरत मोहानी

लुत्फ़ की उन से इल्तिजा न करें

हसरत मोहानी

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