जफ़ा Poetry (page 6)

सितम-ए-ना-रवा को रोते हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

अपने मरने का अगर रंज मुझे है तो ये है

रिन्द लखनवी

गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें

रिन्द लखनवी

शीशा-सिफ़त थे आप और शीशा-सिफ़त थे हम

रेनू नय्यर

उस का चेहरा भी सुनाता है कहानी उस की

रेहाना क़मर

हुस्न पाबंद-ए-हिना हो जैसे

रज़ा हमदानी

नाज़ का मारा हुआ हूँ मैं अदा की सौगंद

रज़ा अज़ीमाबादी

लाज़िम है बुलंद आह की रायत न करे तू

रज़ा अज़ीमाबादी

हम उन को हाल-ए-दिल अपना सुनाए जाते हैं

रौनक़ टोंकवी

ख़्वाब ही में रुख़-ए-पुर-नूर दिखाए कोई

रतन पंडोरवी

कुछ हद भी ऐ फ़लक सितम-ए-ना-रवा की है

रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी

ममनूँ ही रहा उस बुत-ए-काफ़िर की जफ़ा का

रासिख़ अज़ीमाबादी

हैं सर-निगूँ जो ताना-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा से हम

रशीद रामपुरी

जनाज़ा धूम से उस आशिक़-ए-जाँ-बाज़ का निकले

रंजूर अज़ीमाबादी

इश्क़ से बच के किधर जाएँगे हम

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

हर इक की है पसंद अपनी हर इक का है मिज़ाज अपना

राणा गन्नौरी

वो बाम पे फिर जल्वा-नुमा मेरे लिए है

राज कुमार सूरी नदीम

हम गर्दिश-ए-दौराँ के सितम देख रहे हैं

राज कुमार सूरी नदीम

ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम

रईस अमरोहवी

दब गईं मौजें यकायक जोश में आने के बा'द

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

यास-ओ-हिरास-ओ-जौर-ओ-जफ़ा से अलग-थलग

राही फ़िदाई

टुकड़े टुकड़े मिरा दामान-ए-शकेबाई है

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

ऐ अहल-ए-वफ़ा दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते

इक़बाल अज़ीम

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ

इक़बाल अज़ीम

ऐ अहल-ए-वफ़ा दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते

इक़बाल अज़ीम

शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने

इंशा अल्लाह ख़ान

दिल के बेचैन जज़ीरों में उतर जाएगा

इन्दिरा वर्मा

मौसम-ए-गुल है तिरे सुर्ख़ दहन की हद तक

इमरान-उल-हक़ चौहान

मैं सारी उम्र अहद-ए-वफ़ा में लगा रहा

इमरान हुसैन आज़ाद

करता है ऐ 'असर' दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता का गिला

इम्दाद इमाम असर

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