जफ़ा Poetry (page 9)

सब में हूँ फिर किसी से सरोकार भी नहीं

हबीब मूसवी

लैस हो कर जो मिरा तर्क-ए-जफ़ा-कार चले

हबीब मूसवी

ये ग़म नहीं है कि अब आह-ए-ना-रसा भी नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

इस तरह दर्द का तुम अपने मुदावा करना

हबीब आरवी

हमारा उन का तअ'ल्लुक़ जो रस्म-ओ-राह का था

गुलाम जीलानी असग़र

जफ़ा-ए-दिल-शिकन

ग़ुलाम दस्तगीर मुबीन

तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

नज़्म

गोपाल मित्तल

रंगीनी-ए-हवस का वफ़ा नाम रख दिया

गोपाल मित्तल

कज-कुलाही की अदा याद आई

गोपाल मित्तल

तज़ाद

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ज़ेहन में दाएरे से बनाता रहा दूर ही दूर से मुस्कुराता रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा

ग़ुलाम मौला क़लक़

क्या कहें तुझ से हम वफ़ा क्या है

ग़ुलाम मौला क़लक़

किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल

ग़ुलाम मौला क़लक़

जौहर-ए-आसमाँ से क्या न हुआ

ग़ुलाम मौला क़लक़

ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक

ग़ुलाम मौला क़लक़

बज़्म-ए-आलम में सदा हम भी नहीं तुम भी नहीं

ग़नी एजाज़

की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं

ग़ालिब

की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा

ग़ालिब

अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की

ग़ालिब

अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह

ग़ालिब

शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है

ग़ालिब

नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं

ग़ालिब

क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

ग़ालिब

की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं

ग़ालिब

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ग़ालिब

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना

ग़ालिब

हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बअ'द

ग़ालिब

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