चलो चलें Poetry (page 33)

ठिकाना है कहीं जाएँ कहाँ नाचार बैठे हैं

इम्दाद इमाम असर

ग़म नहीं मुझ को जो वक़्त-ए-इम्तिहाँ मारा गया

इम्दाद इमाम असर

दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ

इम्दाद इमाम असर

अपनी जाँ-बाज़ी का जिस दम इम्तिहाँ हो जाएगा

इम्दाद इमाम असर

ये क्या कहा मुझे ओ बद-ज़बाँ बहुत अच्छा

इमदाद अली बहर

साक़ी तिरे बग़ैर है महफ़िल से दिल उचाट

इमदाद अली बहर

मैं उस बुत का वस्ल ऐ ख़ुदा चाहता हूँ

इमदाद अली बहर

ख़ुर्शीद फ़िराक़ में तपाँ है

इमदाद अली बहर

ख़ूब-रू सब हैं मगर हूरा-शमाइल एक है

इमदाद अली बहर

जिस को चाहो तुम उस को भर दो

इमदाद अली बहर

हर तरफ़ मज्मा-ए-आशिक़ाँ है

इमदाद अली बहर

रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

दिल में पोशीदा तप-ए-इश्क़-ए-बुताँ रखते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

तुम्हारे जाते ही हर चश्म-ए-तर को देखते हैं

इमाम अाज़म

मंज़िलों का मैं पता भी दूँगा

इकराम तबस्सुम

हर राहत-ए-जाँ लम्हे से उफ़्ताद की ज़िद है

इकराम आज़म

जुज़ क़ुर्बत-ए-जाँ पर्दा-ए-जाँ कोई नहीं था

इफ्तिखार शफ़ी

दिल से जब आह निकल जाएगी

इफ़्तिख़ार राग़िब

किसी के हक़ में सही फ़ैसला हुआ तो है

इफ़्तिख़ार नसीम

किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

हमें भी आफ़ियत-ए-जाँ का है ख़याल बहुत

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अज़ाब-ए-वहशत-ए-जाँ का सिला न माँगे कोई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

इल्तिजा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बन-बास

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ज़रा सी देर को आए थे ख़्वाब आँखों में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये नक़्श हम जो सर-ए-लौह-ए-जाँ बनाते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

थकन तो अगले सफ़र के लिए बहाना था

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शहर-ए-गुल के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ौफ़ आता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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