चलो चलें Poetry (page 37)

तीसरी आँख

हसन अब्बास रज़ा

न आरज़ुओं का चाँद चमका न क़ुर्बतों के गुलाब महके

हसन अब्बास रज़ा

मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है

हसन अब्बास रज़ा

हमें तो ख़्वाहिश-ए-दुनिया ने रुस्वा कर दिया है

हसन अब्बास रज़ा

गुलाब-ए-सुर्ख़ से आरास्ता दालान करना है

हसन अब्बास रज़ा

आँखों से ख़्वाब दिल से तमन्ना तमाम-शुद

हसन अब्बास रज़ा

हुस्न-ए-मुख़्तार सही इश्क़ भी मजबूर नहीं

हसन आबिद

क़िस्सा-ख़्वानी बाज़ार की एक शाम

हारिस ख़लीक़

हवा सैराब करती है

हारिस ख़लीक़

तख़लीक़-ए-बे-सबात का ज़र्रा-नज़ीर हूँ

हक़ीर जहानी

ऐ यास जो तू दिल में आई सब कुछ हुआ पर कुछ भी न हुआ

हक़ीर

नश्शा करने का बहाना हो गया

हनीफ़ तरीन

ये फ़ज़ा-ए-नील-गूँ ये बाल-ओ-पर काफ़ी नहीं

हनीफ़ फ़ौक़

रात के दर पे ये दस्तक ये मुसलसल दस्तक

हनीफ़ फ़ौक़

जिस्म-ओ-जाँ किस ग़म का गहवारा बने

हनीफ़ फ़ौक़

मैं जो अपने हाल से कट गया तो कई ज़मानों में बट गया

हनीफ़ असअदी

ख़ल्वत-ए-जाँ में तिरा दर्द बसाना चाहे

हनीफ़ अख़गर

तोड़ कर जोड़ दिया करते हो क्या करते हो

हनीफ़ अख़गर

ख़ल्वत-ए-जाँ में तिरा दर्द बसाना चाहे

हनीफ़ अख़गर

इतना सुकून तो ग़म-ए-पिन्हाँ में आ गया

हनीफ़ अख़गर

इस तरह मह-रुख़ों को पशेमाँ करेंगे हम

हनीफ़ अख़गर

हाल-ए-दिल-ए-बीमार समझ में चारागरों की आए कम

हनीफ़ अख़गर

देखना ये इश्क़ में हुस्न-ए-पज़ीराई के रंग

हनीफ़ अख़गर

सेहन-ए-आइंदा को इम्कान से धोए जाएँ

हम्माद नियाज़ी

शाम से ज़ोरों पे तूफ़ाँ है बहुत

हामिदी काश्मीरी

बस उसी का सफ़र-ए-शब में तलबगार है क्या

हामिदी काश्मीरी

साँस लेने के लिए ताज़ा हवा भेजी है

हामिद सरोश

सुब्ह चले तो ज़ौक़-ए-तलब था अर्श-निशाँ ख़ुर्शीद-शिकार

हमीद नसीम

है यक दो नफ़स सैर-ए-जहान-ए-गुज़राँ और

हमीद नसीम

मुझे रहीन-ए-ग़म-ए-जाँ-नवाज़ रहने दे

हमीद नागपुरी

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