चलो चलें Poetry (page 36)

हवा के रुख़ पर चराग़-ए-उल्फ़त की लौ बढ़ा कर चला गया है

हसन रिज़वी

अनीस-ए-जाँ हैं अभी तक निशानियाँ उस की

हसन रिज़वी

आ बसे कितने नए लोग मकान-ए-जाँ में

हसन नईम

निदा-ए-तख़्लीक़

हसन नईम

वहशत-ए-जाँ को पयाम-ए-निगह-ए-नाज़ तो दो

हसन नईम

क़ल्ब-ओ-जाँ में हुस्न की गहराइयाँ रह जाएँगी

हसन नईम

पैकर-ए-नाज़ पे जब मौज-ए-हया चलती थी

हसन नईम

मुझ को कोई भी सिला मिलने में दुश्वारी न थी

हसन नईम

मैं किस वरक़ को छुपाऊँ दिखाऊँ कौन सा बाब

हसन नईम

मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे

हसन नईम

कू-ए-रुसवाई से उठ कर दार तक तन्हा गया

हसन नईम

करें न याद वो शब हादिसा हुआ सो हुआ

हसन नईम

करें न याद शब-ए-हादिसा हुआ सो हुआ

हसन नईम

जंगलों की ये मुहिम है रख़्त-ए-जाँ कोई नहीं

हसन नईम

एक भी हर्फ़ न था ख़ुश-ख़बरी का लिक्खा

हसन नईम

दिल वो किश्त-ए-आरज़ू था जिस की पैमाइश न की

हसन नईम

आँखों से टपके ओस तो जाँ में नमी रहे

हसन नईम

सर उठा कर न कभी देखा कहाँ बैठे थे

हसन कमाल

अपनी वज्ह-ए-बर्बादी जानते हैं हम लेकिन क्या करें बयाँ लोगो

हसन कमाल

मिल गया दिल निकल गया मतलब

हसन बरेलवी

जल्वे तिरे जो रौनक़-ए-बाज़ार हो गए

हसन बरेलवी

जल्वे तिरे जो रौनक़-ए-बाज़ार हो गए

हसन बरेलवी

शुआ-ए-ज़र न मिली रंग-ए-शाइराना मिला

हसन अज़ीज़

अजीब हाल है सहरा-नशीं हैं घर वाले

हसन अज़ीज़

सीने में चराग़ जल रहा है

हसन अख्तर जलील

फाँदती फिरती हैं एहसास के जंगल रूहें

हसन अख्तर जलील

इक भयानक तीरगी है रौशनी ऐ रौशनी

हसन अख्तर जलील

ग़म-ए-जाँ गुम ग़म-ए-दुनिया में तो होना मुश्किल

हसन अकबर कमाल

दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतरा

हसन आबिदी

सवाल ये नहीं मुझ से है क्यूँ गुरेज़ाँ वो

हसन अब्बास रज़ा

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