तीसरी आँख

तो फिर यूँ हुआ

हम शिकस्ता-दिलों ने सिपर डाल दी

जितने नावक-ब-दस्त अपने अहबाब

कोह-ए-वफ़ा पर खड़े थे

हमें उन सभी की जिगर-दारियों

बे-ग़रज़ जुरअतों पर मुकम्मल यक़ीं था

मगर जाँ-निसारी के इस मारके में

सफ़-ए-हम-रहाँ को पलट कर जो देखा

तो कोई नहीं था

सभी नर्ग़ा-ए-दुश्मनाँ में खड़े थे

हुजूम-ए-कशीदा-सराँ

पा-ब-ज़ंजीर ज़ेर-ए-नगीं था

सो फिर यूँ हुआ

मक़्तलों की तरफ़ जब रवाना हुए हम

तो सारी जबीनों पे नंगी ख़जालत

बरहना नदामत के क़तरे जुड़े थे

हम अंधे सराबों के ला-मुन्तहा सिलसिलों में खड़े थे

हज़र साअतों

थरथराते लबों पर

फ़क़त ख़ामुशी थी

सितम ताज़ियानों के क़ातिल फरेरे

फ़सील-ए-ज़बान-ओ-दहन पर गड़े थे

वो मौसम कड़े थे

तो फिर यूँ हुआ

हम दुरीदा-बदन

दश्ना-ए-क़ातिलाँ का हदफ़ बन गए

क़तरा क़तरा हमारा चमकता गए

शहर-ए-मेहरबाँ के दर-ओ-बाम पर

जगमगाने लगे

तीसरी आँख का नामा-बर हम को मुज़्दा सुनाने लगा

(1032) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Tisri Aankh In Hindi By Famous Poet Hasan Abbas Raza. Tisri Aankh is written by Hasan Abbas Raza. Complete Poem Tisri Aankh in Hindi by Hasan Abbas Raza. Download free Tisri Aankh Poem for Youth in PDF. Tisri Aankh is a Poem on Inspiration for young students. Share Tisri Aankh with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.