चलो चलें Poetry (page 43)

ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की

फ़िराक़ गोरखपुरी

तिरी जुस्तुजू में देखा मैं कहाँ कहाँ से गुज़रा

फ़िगार मुरादाबादी

ज़िंदगी साज़-ए-शिकस्ता की फ़ुग़ाँ ही तो नहीं

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

कहीं से नीले कहीं से काले पड़े हुए हैं

फ़ाज़िल जमीली

ज़मज़मा-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ दूर तक

फ़ाज़िल अंसारी

इधर भी देख ज़रा बे-क़रार हम भी हैं

फ़ज़ल हुसैन साबिर

वही रिवायत गज़ीदा-दानिश वही हिकायत किताब वाली

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सुलगना अंदर अंदर मिस्रा-ए-तर सोचते रहना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सराब-ए-जिस्म को सहरा-ए-जाँ में रख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

राएगाँ सब कुछ हुआ कैसी बसीरत क्या हुनर

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

पाया-ए-ख़िश्त-ओ-ख़ज़फ़ और गुहर से ऊँचा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

न दामनों में यहाँ ख़ाक-ए-रहगुज़र बाँधो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मैं ख़ुद हूँ नक़्द मगर सौ उधार सर पर है

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

बिसात-ए-दानिश-ओ-हर्फ़-ओ-हुनर कहाँ खोलें

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अब आ गए हो तो रफ़्तगाँ को भी याद रखना

फ़य्याज़ तहसीन

आज जाने की ज़िद न करो

फ़य्याज़ हाशमी

कोई आँख चुपके चुपके मुझे यूँ निहारती है

फ़े सीन एजाज़

ख़्वाब गिरवी रख दिए आँखों का सौदा कर दिया

फ़ातिमा हसन

प्यार जादू है किसी दिल में उतर जाएगा

फ़सीह अकमल

मुनव्वर जिस्म-ओ-जाँ होने लगे हैं

फ़सीह अकमल

हर शख़्स को फ़रेब-ए-नज़र ने किया शिकार

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

होश ओ ख़िरद गँवा के तिरे इंतिज़ार में

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

ख़बर मफ़क़ूद है लेकिन

फर्रुख यार

अब के जुनूँ हुआ तो गरेबाँ को फाड़ कर

फ़र्रुख़ जाफ़री

सुना है हर घड़ी तू मुस्कुराता रहता है

फ़ारूक़ शफ़क़

कोई भी शख़्स न हंगामा-ए-मकाँ में मिला

फ़ारूक़ शफ़क़

मगर इन आँखों में किस सुब्ह के हवाले थे

फ़ारूक़ मुज़्तर

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