चलो चलें Poetry (page 41)

कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

आँख से बिछड़े काजल को तहरीर बनाने वाले

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वो संग-दिल अंगुश्त-ब-दंदाँ नज़र आवे

ग़ुलाम मौला क़लक़

तुझ से ऐ ज़िंदगी घबरा ही चले थे हम तो

ग़ुलाम मौला क़लक़

वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है

ग़ुलाम मौला क़लक़

उठने में दर्द-ए-मुत्तसिल हूँ मैं

ग़ुलाम मौला क़लक़

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो

ग़ुलाम मौला क़लक़

मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना

ग़ुलाम मौला क़लक़

किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़ुद देख ख़ुदी को ओ ख़ुद-आरा

ग़ुलाम मौला क़लक़

जौहर-ए-आसमाँ से क्या न हुआ

ग़ुलाम मौला क़लक़

हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़

ग़ुलाम मौला क़लक़

है ख़मोशी-ए-इंतिज़ार बला

ग़ुलाम मौला क़लक़

चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'

ग़ुलाम मौला क़लक़

किसी को ज़हर दूँगा और किसी को जाम दूँगा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नाज़ ने फिर किया आग़ाज़ वो अंदाज़-ए-नियाज़

ग़ुलाम भीक नैरंग

फिर वही हम हैं ख़याल-ए-रुख़-ए-ज़ेबा है वही

ग़ुलाम भीक नैरंग

मिरे पहलू से जो निकले वो मिरी जाँ हो कर

ग़ुलाम भीक नैरंग

किस तरह वाक़िफ़ हों हाल-ए-आशिक़-ए-जाँ-बाज़ से

ग़ुलाम भीक नैरंग

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

ग़ुलाम भीक नैरंग

कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब तो आया

ग़ुफ़रान अमजद

तसल्ली को हमारी बाग़बाँ कुछ और कहता है

ग़ुबार भट्टी

सूरज को क्या पता है किधर धूप चाहिए

ग़यास मतीन

थकन ग़ालिब है दम टूटे हुए हैं

ग़नी एजाज़

बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं

ग़नी एजाज़

कभी गुमान कभी ए'तिबार बन के रहा

ग़ालिब अयाज़

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