चलो चलें Poetry (page 44)

इसे भी छोड़ूँ उसे भी छोड़ूँ तुम्हें सभी से ही मसअला है?

फरीहा नक़वी

वो रौशनी है कहाँ जिस के बाद साया नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

इज़हार-ए-अक़ीदत में कहाँ तक निकल आए

फ़ारिग़ बुख़ारी

ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है

फ़रहत शहज़ाद

जिस्म का कूज़ा है अपना और न ये दरिया-ए-जाँ

फ़रहत एहसास

सुकूत

फ़रहत एहसास

बैज़ा-ए-नूर

फ़रहत एहसास

ये बाग़ ज़िंदा रहे ये बहार ज़िंदा रहे

फ़रहत एहसास

वो मेरी जाँ के सदफ़ में गुहर सा रहता है

फ़रहत एहसास

वो महफ़िलें पुरानी अफ़्साना हो रही हैं

फ़रहत एहसास

रास्ता दे ऐ हुजूम-ए-शहर घर जाएँगे हम

फ़रहत एहसास

रक़्स-ए-इल्हाम कर रहा हूँ

फ़रहत एहसास

पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है

फ़रहत एहसास

फिर वही मौसम-ए-जुदाई है

फ़रहत एहसास

मिरी मोहब्बत में सारी दुनिया को इक खिलौना बना दिया है

फ़रहत एहसास

मिरे शे'रों में फ़नकारी नहीं है

फ़रहत एहसास

महफ़िल में अब के आओ तो ऐसी ख़ता न हो

फ़रहत एहसास

ख़ाक है मेरा बदन ख़ाक ही उस का होगा

फ़रहत एहसास

कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए

फ़रहत एहसास

गर अपने आप में इंसान बढ़ता जा रहा है

फ़रहत एहसास

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

फ़रहत एहसास

बुझ गए सारे चराग़-ए-जिस्म-ओ-जाँ तब दिल जला

फ़रहत एहसास

बहुत मुमकिन था हम दो जिस्म और इक जान हो जाते

फ़रहत एहसास

बदन और रूह में झगड़ा पड़ा है

फ़रहत एहसास

हम से मिल कर कोई गुफ़्तुगू कीजिए

फ़रहत अब्बास

उदास शाम में पज़मुर्दा बाद बन के न आ

फ़रहान सालिम

मिरे चराग़ो मिरा गंज-ए-बे-कराँ ले लो

फ़रहान सालिम

रग-ओ-पै में सरायत कर गया वो

फ़रीद परबती

तल्ख़ गुज़रे कि शादमाँ गुज़रे

फ़रीद जावेद

तल्ख़ गुज़रे कि शादमाँ गुज़रे

फ़रीद जावेद

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