चलो चलें Poetry (page 71)

किस की रखती हैं ये मजाल अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

कहो तुम किस सबब रूठे हो प्यारे बे-गुनह हम सीं

आबरू शाह मुबारक

इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो

आबरू शाह मुबारक

दुश्मन-ए-जाँ है तिश्ना-ए-ख़ूँ है

आबरू शाह मुबारक

बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब आहिस्ता आहिस्ता

आबरू शाह मुबारक

अगर अँखियों सीं अँखियों को मिलाओगे तो क्या होगा

आबरू शाह मुबारक

आशिक़ बिपत के मारे रोते हुए जिधर जाँ

आबरू शाह मुबारक

इलाही क्या कभी पूरे ये अरमाँ हो भी सकते हैं

अबरार शाहजहाँपुरी

मरकज़-ए-जाँ तो वही तू है मगर तेरे सिवा

अबरार अहमद

हवा जब तेज़ चलती है

अबरार अहमद

आख़िरी दिन से पहले

अबरार अहमद

जो भी यकजा है बिखरता नज़र आता है मुझे

अबरार अहमद

हम ने रक्खा था जिसे अपनी कहानी में कहीं

अबरार अहमद

वहीं से हद मिली है जा पहुँचता कू-ए-जानाँ तक

अब्र अहसनी गनौरी

मुक़द्दर में साहिल कहाँ है मियाँ

आबिद मुनावरी

ज़मीं से चल के तो पहुँचा हूँ आसमाँ तक मैं

आबिद हशरी

श्याम गोकुल न जाना कि राधा का जी अब न बंसी की तानों पे लहराएगा

आबिद हशरी

न कर्ब-ए-हिज्र न कैफ़्फ़ियत-ए-विसाल में हूँ

आबिद हशरी

सफ़र के बा'द भी ज़ौक़-ए-सफ़र न रह जाए

अभिषेक शुक्ला

फ़सील-ए-जिस्म गिरा दे मकान-ए-जाँ से निकल

अभिषेक शुक्ला

चलते हुए मुझ में कहीं ठहरा हुआ तू है

अभिषेक शुक्ला

अभी तो आप ही हाइल है रास्ता शब का

अभिषेक शुक्ला

अब इख़्तियार में मौजें न ये रवानी है

अभिषेक शुक्ला

अगर वो बे-अदब है बे-अदब लिख

अब्दुस्समद ’तपिश’

वादा-ए-वस्ल है लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार उठा

अब्दुल्लाह कमाल

क़दम क़दम पे नया इम्तिहाँ है मेरे लिए

अब्दुल्लाह कमाल

इतना यक़ीन रख कि गुमाँ बाक़ी रहे

अब्दुल्लाह कमाल

अपने होने का इक इक पल तजरबा करते रहे

अब्दुल्लाह कमाल

मिरा दिल मुब्तला है झाँवली का

अब्दुल वहाब यकरू

कब करे क़स्द यार आवन का

अब्दुल वहाब यकरू

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