जुदा Poetry (page 17)

हाथ निकले अपने दोनों काम के

दाग़ देहलवी

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं

दाग़ देहलवी

अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता

चकबस्त ब्रिज नारायण

नाम उस का

बिमल कृष्ण अश्क

चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग

भारत भूषण पन्त

ज़ाहिदों से न बनी हश्र के दिन भी या-रब

बेख़ुद देहलवी

क्या मिले आप की महफ़िल में भला एक से एक

बेख़ुद देहलवी

दिल है मुश्ताक़ जुदा आँख तलबगार जुदा

बेख़ुद देहलवी

ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है

बेख़ुद देहलवी

आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप

बेख़ुद देहलवी

उन को बुत समझा था या उन को ख़ुदा समझा था मैं

बहज़ाद लखनवी

यूँ गुलशन-ए-हस्ती की माली ने बिना डाली

बेदम शाह वारसी

सहारा मौजों का ले ले के बढ़ रहा हूँ मैं

बेदम शाह वारसी

पास-ए-अदब मुझे उन्हें शर्म-ओ-हया न हो

बेदम शाह वारसी

कोई किसी का कहीं आश्ना नहीं देखा

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

कोई मेयार-ए-मोहब्बत न रहा मेरे बा'द

बासित भोपाली

हयात-ओ-मौत का इक सिलसिला है

बासित भोपाली

दूर साया सा है क्या फूलों में

बासिर सुल्तान काज़मी

माना उस को गिला नहीं मुझ से

बशीर महताब

किस मस्ती में अब रहता हूँ

बशीर महताब

जुदा भी हो के वो इक पल कभी जुदा न हुआ

बशीर अहमद बशीर

जब छाई घटा लहराई धनक इक हुस्न-ए-मुकम्मल याद आया

बशर नवाज़

रंग से पैरहन-ए-सादा हिनाई हो जाए

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

तिरी निगाह का अंदाज़ क्या नज़र आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

सुबुक-सरी में भी अंदेशा-ए-हवा रखना

बाक़र नक़वी

लब-ए-जाँ-बख़्श के मीठे का तेरे जो मज़ा पाया

बाक़र आगाह वेलोरी

खोया खोया उदास सा होगा

बलराज कोमल

धूप बढ़ते ही जुदा हो जाएगा

बहराम तारिक़

हम-कलामी में दर-ओ-दीवार से

बहराम तारिक़

शीशा लब से जुदा नहीं होता

अज़ीज़ वारसी

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