जुदा Poetry (page 18)

ज़ंजीर-ए-पा से आहन-ए-शमशीर है तलब

अज़ीज़ हामिद मदनी

किनारों से जुदा होता नहीं तुग़्यानियों का दुख

अज़हर नक़वी

हर एक राह में इम्कान-ए-हादिसा है अभी

अज़हर नैयर

इस बार उन से मिल के जुदा हम जो हो गए

अज़हर इनायती

ख़ुद से अब मुझ को जुदा यूँ ही मिरी जाँ रखना

अज़ीज़ परीहारी

लम्हा लम्हा इक नई सई-ए-बक़ा करती हुई

आज़ाद गुलाटी

कभी मिली जो तिरे दर्द की नवा मुझ को

आज़ाद गुलाटी

ये इक शान-ए-ख़ुदा है मैं नहीं हूँ

आज़ाद अंसारी

हक़ बना बातिल बना नाक़िस बना कामिल बना

आज़ाद अंसारी

पानी था मगर अपने ही दरिया से जुदा था

अतीक़ुल्लाह

मिरे सुपुर्द कहाँ वो ख़ज़ाना करता था

अतीक़ुल्लाह

क्या तुम ने कभी ज़िंदगी करते हुए देखा

अतीक़ुल्लाह

गिरती हुई दीवार का साया था तिरा साथ

अतहर राज़

फूलों से बहारों में जुदा थे तो हमीं थे

अतहर राज़

किस दर्जा मिरे शहर की दिलकश है फ़ज़ा भी

अतहर नादिर

शोहरत-ए-फ़न बहुत हुई दाद कमाल दे गए

अताउर्रहमान जमील

रात वहशत से गुरेज़ाँ था मैं आहू की तरह

अता तुराब

मैं सच तो कह दूँ पर उस को कहीं बुरा न लगे

असरा रिज़वी

न दश्त ओ दर से अलग था न जंगलों से जुदा

असलम आज़ाद

बस एक बार उसे रौशनी में देखा था

असलम आज़ाद

ज़ाविया धूप ने कुछ ऐसा बनाया है कि हम

आसिम वास्ती

दामन-ए-गुल में कहीं ख़ार छुपा देखते हैं

आसिम वास्ती

दिल दिया जी दिया ख़फ़ा न किया

आसिफ़ुद्दौला

दाम-ए-उल्फ़त में फँसा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल

आसिफ़ुद्दौला

ऐ मिरे दिल बता ख़्वाब बुनता है क्यूँ

अासिफ़ा ज़मानी

सदियों से अजनबी

अासिफ़ शफ़ी

ऐ शैख़ अगर कुफ़्र से इस्लाम जुदा है

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

आलम में अगर इश्क़ का बाज़ार न होता

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

सोचते हैं कि बुलबुला हो जाएँ

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

एक नया वाक़िआ इश्क़ में क्या हो गया

अशफ़ाक़ आमिर

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