मैं सच तो कह दूँ पर उस को कहीं बुरा न लगे

मैं सच तो कह दूँ पर उस को कहीं बुरा न लगे

मिरे ख़याल की यारब उसे हवा न लगे

अजीब तर्ज़ से अब के निभाया उल्फ़त को

वफ़ा जो की है तो इस तरह कि वफ़ा न लगे

दरून-ए-ज़ात बसा है जहान यादों का

वो दूर रह के भी मुझ को कभी जुदा न लगे

कभी तो कहता था हर लम्हा तेरे साथ हूँ मैं

अब ऐसे बछड़ा के उस का कहीं पता न लगे

तबीब तुम को भुलाने का कर रहा है इलाज

मरज़ हुआ है पुराना कोई दवा न लगे

तुम्हारे वास्ते जब जब बढ़ाया दस्त-ए-तलब

अजीब बात है इस दम दुआ दुआ न लगे

उठे नज़र से न उस की फुसून-ए-पर्दा-ए-हुस्न

ख़ता भी तुझ से अगर हो उसे ख़ता न लगे

ये तेरा तर्ज़-ए-बयाँ मुश्रिकों सा है 'असरा'

वो दिन न आए के तुझ को ख़ुदा ख़ुदा न लगे

(1838) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Main Sach To Kah Dun Par Usko Kahin Bura Na Lage In Hindi By Famous Poet Asra Rizvi. Main Sach To Kah Dun Par Usko Kahin Bura Na Lage is written by Asra Rizvi. Complete Poem Main Sach To Kah Dun Par Usko Kahin Bura Na Lage in Hindi by Asra Rizvi. Download free Main Sach To Kah Dun Par Usko Kahin Bura Na Lage Poem for Youth in PDF. Main Sach To Kah Dun Par Usko Kahin Bura Na Lage is a Poem on Inspiration for young students. Share Main Sach To Kah Dun Par Usko Kahin Bura Na Lage with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.