ख़िज़ाँ का मौसम

ज़वाल पर थी बहार की रुत

ख़िज़ाँ का मौसम उरूज पर था

उदासियाँ थीं हर एक शय पर

चमन से शादाबियाँ ख़फ़ा थीं

उन ही दिनों में थी मैं भी तन्हा

उदासी मुझ को भी डस रही थी

वो गिरते पत्तों की सूखी आहट

ये सहरा सहरा बिखरती हालत

हमी को मेरी कुचल रही थी

मैं लम्हा लम्हा सुलग रही थी

मुझे ये इरफ़ान हो गया था

हक़ीक़त अपनी भी खुल रही थी

कि ज़ात अपनी है यूँ ही फ़ानी

जो एक झटका ख़िज़ाँ का आए

तो ज़िंदगी का शजर भी इस पुल

ख़मोश-ओ-तन्हा खड़ा मिलेगा

मिज़ाज और ख़ुश-रवी के पत्ते

दिलों में लोगों के मिस्ल-ए-सहरा

फिरेंगे मारे ये याद बन कर

कुछ ही दिनों तक

मगर मुक़द्दर है उन का फ़ानी

के लाख पत्ते ये शोर कर लें

मिज़ाज में सर-कशी भी रख लें

या गिर्या कर लें उदास हो लें

तो फ़र्क़ उसे ये बस पड़ेगा

ज़मीन उन को समेट लेगी

ज़रा सी फिर ये जगह भी देगी

करिश्मा क़ुदरत का है ये ऐसा

उरूज पर है ज़वाल अपना

हर एक को है पलट के जाना

(1987) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

KHizan Ka Mausam In Hindi By Famous Poet Asra Rizvi. KHizan Ka Mausam is written by Asra Rizvi. Complete Poem KHizan Ka Mausam in Hindi by Asra Rizvi. Download free KHizan Ka Mausam Poem for Youth in PDF. KHizan Ka Mausam is a Poem on Inspiration for young students. Share KHizan Ka Mausam with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.