जुदा Poetry (page 15)

राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे

ग़ुलाम मौला क़लक़

हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

दिल के हर जुज़्व में जुदाई है

ग़ुलाम मौला क़लक़

मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ख़्वाब आँखों की गली छोड़ के जाने निकले

ग़यास मतीन

बज़्म-ए-आलम में सदा हम भी नहीं तुम भी नहीं

ग़नी एजाज़

अंदाज़-ए-फ़िक्र अहल-ए-जहाँ का जुदा रहा

ग़नी एजाज़

तुझ से क़िस्मत में मिरी सूरत-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद

ग़ालिब

दिल से मिटना तिरी अंगुश्त-ए-हिनाई का ख़याल

ग़ालिब

तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं

ग़ालिब

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता

ग़ालिब

मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ख़राबात चाहिए

ग़ालिब

मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ

ग़ालिब

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना

ग़ालिब

हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बअ'द

ग़ालिब

तमाम जिस्म की परतें जुदा जुदा करके

फ़िज़ा कौसरी

तमाम जिस्म की परतें जुदा जुदा करके

फ़िज़ा कौसरी

तुझे किस तरह छुड़ाऊँ ख़लिश-ए-ग़म-ए-निहाँ से

फ़िज़ा जालंधरी

समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है

फ़ाज़िल जमीली

दे गया लिख कर वो बस इतना जुदा होते हुए

फ़सीह अकमल

मातम-ए-नीम-ए-शब

फ़ारूक़ नाज़की

दर्द की रात गुज़रती है मगर आहिस्ता

फ़ारूक़ नाज़की

तेरी ख़ातिर ये फ़ुसूँ हम ने जगा रक्खा है

फ़ारिग़ बुख़ारी

इस औज पर न उछालो मुझे हवा कर के

फ़ारिग़ बुख़ारी

शाम कहती है कोई बात जुदा सी लिक्खूँ

फ़रहत शहज़ाद

दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से

फ़रहत कानपुरी

कोई भी हम-सफ़र नहीं होता

फ़रहत कानपुरी

आग़ाज़ की तारीख़

फ़रहत एहसास

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