कारवां Poetry (page 8)

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया

फ़िराक़ गोरखपुरी

लुत्फ़-सामाँ इताब-ए-यार भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

सई-ए-ग़ैर-हासिल को मुद्दआ नहीं मिलता

फ़िगार उन्नावी

चला हूँ अपनी मंज़िल की तरफ़ तो शादमाँ हो कर

फ़िगार उन्नावी

ज़िंदगानी को अदम-आबाद ले जाने लगा

फ़ाज़िल जमीली

दिल के मकाँ में आँख के आँगन में कुछ न था

फ़ाज़िल अंसारी

राह में उस की चलें और इम्तिहाँ कोई न हो

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

किसी को सोचना दिल का गुदाज़ हो जाना

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है

फ़रहत शहज़ाद

दश्त-ए-वहशत ने फिर पुकारा है

फ़रहत शहज़ाद

दिनी हैं सब कोई राती नहीं है

फ़रहत एहसास

शौक़ का सिलसिला बे-कराँ है

फ़रीद जावेद

न ग़ुरूर है ख़िरद को न जुनूँ में बाँकपन है

फ़रीद जावेद

न ग़ुरूर है ख़िरद को न जुनूँ में बाँकपन है

फ़रीद जावेद

अभी मकाँ मैं अभी सू-ए-ला-मकाँ हूँ मैं

फ़रीद जावेद

शिकायत हम नहीं करते रिआ'यत वो नहीं करते

फ़रह इक़बाल

ख़ुशी से रंज का बदला यहाँ नहीं मिलता

फ़ानी बदायुनी

इस तरह रहबर ने लूटा कारवाँ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

यूँ तिरी तलाश में तेरे ख़स्ता-जाँ चले

फ़ना निज़ामी कानपुरी

घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

निकले वो फूल बन के तिरे गुल्सिताँ से हम

फ़ना बुलंदशहरी

मुलाक़ात

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ख़ुर्शीद-ए-महशर की लौ

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जग में आता है हर बशर तन्हा

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

किसी के शिकवा-हा-ए-जौर से वाक़िफ़ ज़बाँ क्यूँ हो

एजाज़ वारसी

ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात

एजाज़ वारसी

ज़रा बतला ज़माँ क्या है मकाँ के उस तरफ़ क्या है

एजाज़ गुल

अब कहो कारवाँ किधर को चले

एहसान दानिश

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