नाव Poetry (page 5)

एक ही ज़िंदा बचा है ये निराला पागल

सरदार सलीम

उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

लाख समझाया मगर ज़िद पे अड़ी है अब भी

सदार आसिफ़

खाते हैं हम हचकोले इस पागल संसार के बीच

सरस्वती सरन कैफ़

अलकुबड़े

साक़ी फ़ारुक़ी

दश्त की वीरानियों में ख़ेमा-ज़न होता हुआ

सालिम सलीम

किसी रुत में जब मुस्कुराता है तू

सलीम शहज़ाद

फिर कोई महशर उठाने मेरी तन्हाई में आ

सलीम शाहिद

इन दर-ओ-दीवार की आँखों से पट्टी खोल कर

सलीम शाहिद

पुराने साहिलों पर नया गीत

सलीम कौसर

क्या लुत्फ़ हवाओं के सफ़र में नहीं रक्खा

सलीम फ़राज़

चली है मौज में काग़ज़ की कश्ती

सलीम अहमद

मुझे इन आते जाते मौसमों से डर नहीं लगता

सलीम अहमद

मिला जो काम ग़म-ए-मो'तबर बनाने का

सलीम अहमद

देखने के लिए इक शर्त है मंज़र होना

सलीम अहमद

बैठे हैं सुनहरी कश्ती में और सामने नीला पानी है

सलीम अहमद

रद्द-ए-अमल

सलाम मछली शहरी

था ख़्वाब में ख़याल को तुझ से मुआमला

सलाहुद्दीन परवेज़

नवाह-ए-शौक़ में है इक दयार-ए-निकहत-ए-गुल

सज्जाद बाक़र रिज़वी

अहल-ए-कशती ने ख़ुद-कुशी की थी

साहिर होशियारपुरी

इस बे तुलूअ' शब में क्या तालेअ'-आज़माई

सहबा अख़्तर

हर घड़ी मुझ को बे-क़रार न कर

सहर महमूद

नूह के बा'द

सहर अंसारी

नदीम-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बड़ा सहारा है

साग़र निज़ामी

न कश्ती है न फ़िक्र-ए-ना-ख़ुदा है

साग़र निज़ामी

हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे

साग़र निज़ामी

तौबा तौबा से नदामत की घड़ी आई है

साग़र ख़य्यामी

देख पाए तो करे कोई पज़ीराई भी

सईद शरीक़

ज़िंदगी ग़म के अंधेरों में सँवरने से रही

सादिक़ इंदौरी

ये क्या हुआ कि हर इक रस्म-ओ-राह तोड़ गए

सादिक़ इंदौरी

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