नाव Poetry (page 6)

एक बार फिर

सादिक़

वो पीपल के तले टूटी हुई मेहराब का मंज़र

सदफ़ जाफ़री

चक्खोगे अगर प्यास बढ़ा देगा ये पानी

सबा इकराम

भूल जाना था तो फिर अपना बनाया क्यूँ था

सबा अफ़ग़ानी

नज्म-ए-सहर

रिफ़अत सरोश

ये जो मुझ पर निखार है साईं

रहमान फ़ारिस

हम मय-कशों के क़दमों पर अक्सर

रविश सिद्दीक़ी

ठोकरों की शय परस्तिश की नज़र तक ले गए

रौनक़ रज़ा

आस हुस्न-ए-गुमान से टूटी

रासिख़ इरफ़ानी

उठ गई आज चाँद की डोली

रशीद क़ैसरानी

दरिया को अपने पाँव की कश्ती से पार कर

रशीद निसार

है बे-ख़ुद वस्ल में दिल हिज्र में मुज़्तर सिवा होगा

रशीद लखनवी

निकल कर साया-ए-अब्र-ए-रवाँ से

रसा चुग़ताई

कुछ इस क़दर मैं ख़िरद के असर में आ गया हूँ

राजेश रेड्डी

ज़मीं पर रौशनी ही रौशनी है

रईस अमरोहवी

ये ज़मीं हम को मिली बहते हुए पानी के साथ

इक़बाल नवेद

अगरचे पार काग़ज़ की कभी कश्ती नहीं जाती

इक़बाल नवेद

बगूलों की सफ़ें किरनों के लश्कर सामने आए

इक़बाल माहिर

नज़र जिन की उलझ जाती है उन की ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ से

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

जुदा हो कर समुंदर से किनारा क्या बनेगा

इनआम आज़मी

अगर है रेत की दीवार ध्यान टूटेगा

इम्तियाज़ अहमद राही

ज़िंदगी में जो ये रवानी है

इमरान शमशाद

जब कि सर पर वबाल आता है

इमदाद अली बहर

दो उम्रों की रुई धुन कर आया हूँ

इलियास बाबर आवान

चेहरे पर ख़ुश-हाली ले कर आता हूँ

इलियास बाबर आवान

कटी है उम्र किसी आबदोज़ कश्ती में

इफ़्तिख़ार नसीम

जो डूबती जाती है वो कश्ती भी है मेरी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

ज़माना देखता है हंस के चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ मेरी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

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