खार Poetry (page 12)

कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं

फ़ुज़ैल जाफ़री

कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं

फ़ुज़ैल जाफ़री

दामन-ए-हुस्न में हर अश्क-ए-तमन्ना रख दो

फ़ितरत अंसारी

दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुरअत-ए-इश्क़ हवस-कार हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

सरहदें

फ़ाज़िल जमीली

ये दौर कैसा है या-इलाही कि दोस्त दुश्मन से कम नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

चमक सितारों की नज़रों पे बार गुज़री है

फ़ाज़िल अंसारी

नहीं ख़याल तो फिर इंतिज़ार किस का है

फ़ातिमा वसीया जायसी

सुना है लोग वहाँ मुझ से ख़ार खाते हैं

फ़ारूक़ नाज़की

अजीब रंग सा चेहरों पे बे-कसी का है

फ़ारूक़ नाज़की

जंगल उगा था हद्द-ए-नज़र तक सदाओं का

फ़ारिग़ बुख़ारी

इक ख़लिश सी है मुझे तक़दीर से

फ़रहत कानपुरी

मक्र-ए-हयात रुख़ की क़बा भी उतार दी

फ़रहान सालिम

खो बैठी है सारे ख़द-ओ-ख़ाल अपनी ये दुनिया

फ़रहान सालिम

फ़नकार और मौत

फ़रीद इशरती

मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं

फ़ानी बदायुनी

गुल तो गुल ख़ार तक चुन लिए हैं

फ़ना निज़ामी कानपुरी

कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन

फ़ना निज़ामी कानपुरी

ग़म हर इक आँख को छलकाए ज़रूरी तो नहीं

फ़ना निज़ामी कानपुरी

जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तीन आवाज़ें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रंग है दिल का मिरे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मेजर-इसहाक़ की याद में

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ख़ुशा ज़मानत-ए-ग़म

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गाँव की सड़क

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अगस्त-1952

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन न थी तिरी अंजुमन से पहले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

किस हर्फ़ पे तू ने गोश-ए-लब ऐ जान-ए-जहाँ ग़म्माज़ किया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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