गाँव की सड़क

ये देस मुफ़लिस-ओ-नादार कज-कुलाहों का

ये देस बे-ज़र-ओ-दीनार बादशाहों का

कि जिस की ख़ाक में क़ुदरत है कीमियाई की

ये नायबान-ए-ख़ुदावंद-ए-अर्ज़ का मस्कन

ये नेक पाक बुज़ुर्गों की रूह का मदफ़न

जहाँ पे चाँद सितारों ने जुब्बा-साई की

न जाने कितने ज़मानों से इस का हर रस्ता

मिसाल-ए-ख़ाना-ए-बे-ख़ानुमाँ था दरबस्ता

ख़ुशा कि आज ब-फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा वो दिन आया

कि दस्त-ए-ग़ैब ने इस घर की दर-कुशाई की

चुने गए हैं सभी ख़ार इस की राहों से

सुनी गई है बिल-आख़िर बरहना-पाई की

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