खफा Poetry (page 7)

वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा

इक़बाल अज़ीम

छेड़ने का तो मज़ा जब है कहो और सुनो

इंशा अल्लाह ख़ान

उस बंदा की चाह देखिएगा

इंशा अल्लाह ख़ान

न तो काम रखिए शिकार से न तो दिल लगाइए सैर से

इंशा अल्लाह ख़ान

मुझे क्यूँ न आवे साक़ी नज़र आफ़्ताब उल्टा

इंशा अल्लाह ख़ान

देखना जब मुझे कर शान ये गाली देना

इंशा अल्लाह ख़ान

छेड़ने का तो मज़ा जब है कहो और सुनो

इंशा अल्लाह ख़ान

अच्छा जो ख़फ़ा हम से हो तुम ऐ सनम अच्छा

इंशा अल्लाह ख़ान

जिस का डर था वही हुआ यारो

इंद्र सराज़ी

सूली चढ़े जो यार के क़द पर फ़िदा न हो

इम्दाद इमाम असर

वस्ल में ज़िक्र ग़ैर का न करो

इमदाद अली बहर

ख़ुर्शीद-रुख़ों का सामना है

इमदाद अली बहर

जिस को चाहो तुम उस को भर दो

इमदाद अली बहर

बद-तालई का इलाज क्या हो

इमदाद अली बहर

हुस्न यूँ इश्क़ से नाराज़ है अब

इफ़्तिख़ार आज़मी

दर्द अब दिल की दवा हो जैसे

इफ़्तिख़ार आज़मी

इक ज़रा सी बात पे ये मुँह बनाना रूठना

इब्न-ए-मुफ़्ती

शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं

इब्न-ए-मुफ़्ती

हम से किनारा क्यूँ है तिरे मुब्तला हैं हम

हातिम अली मेहर

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए

हसरत मोहानी

मिलते हैं इस अदा से कि गोया ख़फ़ा नहीं

हसरत मोहानी

छेड़ा है दस्त-ए-शौक़ ने मुझ से ख़फ़ा हैं वो

हसरत मोहानी

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए

हसरत मोहानी

सियहकार थे बा-सफ़ा हो गए हम

हसरत मोहानी

रविश-ए-हुस्न-ए-मुराआत चली जाती है

हसरत मोहानी

क्या काम उन्हें पुर्सिश-ए-अरबाब-ए-वफ़ा से

हसरत मोहानी

हाइल थी बीच में जो रज़ाई तमाम शब

हसरत मोहानी

बाम पर आने लगे वो सामना होने लगा

हसरत मोहानी

बसर हो यूँ कि हर इक दर्द हादिसा न लगे

हसन नईम

दिल लुटेगा जहाँ ख़फ़ा होगा

हसन कमाल

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