खफा Poetry (page 9)
समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है
फ़िराक़ गोरखपुरी
इक रोज़ हुए थे कुछ इशारात ख़फ़ी से
फ़िराक़ गोरखपुरी
मुद्दत से वो ख़ुशबू-ए-हिना ही नहीं आई
फ़सीह अकमल
दे गया लिख कर वो बस इतना जुदा होते हुए
फ़सीह अकमल
हमारे कमरे में पत्तियों की महक ने
फरीहा नक़वी
अज़ीज़ मुझ को हैं तूफ़ान साहिलों से सिवा
फ़रहत शहज़ाद
मैं अपने-आप से बरहम था वो ख़फ़ा मुझ से
फ़रहत शहज़ाद
वहाँ मैं जाऊँ मगर कुछ मिरा भला भी तो हो
फ़रहत एहसास
उस तरफ़ तू तिरी यकताई है
फ़रहत एहसास
ज़बाँ मुद्दआ-आश्ना चाहता हूँ
फ़ानी बदायुनी
मोहताज-ए-अजल क्यूँ है ख़ुद अपनी क़ज़ा हो जा
फ़ानी बदायुनी
मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं
फ़ानी बदायुनी
इश्क़ इश्क़ हो शायद हुस्न में फ़ना हो कर
फ़ानी बदायुनी
कोई तसव्वुर में जल्वा-गर है बहार दिल में समा रही है
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
इंतिसाब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
दस्त-ए-तह-ए-संग-आमदा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
क़र्ज़-ए-निगाह-ए-यार अदा कर चुके हैं हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
इश्क़ की आज इंतिहा कर दो
फ़ैसल फेहमी
बैठा है मेरे सामने वो
फ़हमीदा रियाज़
ख़त लिफ़ाफ़े में ग़ैर का निकला
फ़हमी बदायूनी
आज दिल है कि सर-ए-शाम बुझा लगता है
एज़ाज़ अफ़ज़ल
कोई सबब तो है ऐसा कि एक उम्र से हैं
एजाज़ गुल
गली से अपनी उठाता है वो बहाने से
एजाज़ गुल
यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
एहसान दानिश
रहे जो ज़िंदगी में ज़िंदगी का आसरा हो कर
एहसान दानिश
मौसम से रंग-ओ-बू हैं ख़फ़ा देखते चलो
एहसान दानिश
सामने जो कहा नहीं होता
दरवेश भारती
बहुत मुश्किल है तर्क-ए-आरज़ू रब्त-आश्ना हो कर
दर्शन सिंह
पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
मिरी हथेली में लिक्खा हुआ दिखाई दे
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
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