सृष्टि Poetry (page 2)

तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश

ताबाँ अब्दुल हई

महफ़िल से उठाने के सज़ा-वार हमीं थे

तअशशुक़ लखनवी

तंदुरुस्ती दी ख़ुदा ने तो नक़ाहत न गई

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

साया-ए-ज़ुल्म सर-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा होता है

सय्यद मुनीर

दिल का दरवाज़ा खुला हो जैसे

सय्यद मुनीर

एक मुजस्समे की ज़ियारत

सय्यद काशिफ़ रज़ा

अक़्ल की जान पर बन आई है

सय्यद हामिद

तमाशा-गाह-ए-आलम पर्दा-दार रू-ए-ज़ेबा है

सय्यद बशीर हुसैन बशीर

दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ

सय्यद आबिद अली आबिद

पदमनी

सुरूर जहानाबादी

मुसीबत में भी ग़ैरत-आश्ना ख़ामोश रहती है

सुल्तान अख़्तर

छीन ले क़ुव्वत बीनाई ख़ुदाया मुझ से

सुल्तान अख़्तर

ज़बान-ए-ख़ल्क़ को चुप आस्तीं को तर पा कर

सिद्दीक़ मुजीबी

बादा-ए-इश्क़ से सरशार गुरु-नानक थे

श्याम सुंदर लाल बर्क़

तुम अपने मरीज़-ग़म-हिज्राँ की ख़बर लो

शऊर बलगिरामी

गिल भीक में लेते हैं जिस फूल से रानाई

शुजा

बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो

ज़ौक़

ज़ख़्मी हूँ तिरे नावक-ए-दुज़-दीदा-नज़र से

ज़ौक़

अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो

ज़ौक़

ये काएनात तिरा मोजज़ा लगे है मुझे

शहज़ाद रज़ा लम्स

शब वस्ल की भी चैन से क्यूँकर बसर करें

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

अक़्ल की कुछ कम नहीं है रहबरी मेरे लिए

शौक़ बहराइची

याद की सुब्ह ढल गई शौक़ की शाम हो गई

शमीम करहानी

बड़ी सर्द रात थी कल मगर बड़ी आँच थी बड़ा ताव था

शमीम अब्बास

ये तिरी ख़ल्क़-नवाज़ी का तक़ाज़ा भी नहीं

शकील जमाली

शैख़ तू तो मुरीद-ए-हस्ती है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

रखता हूँ मैं हक़ पर नज़र कोई कुछ कहो कोई कुछ कहो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मैं ज़ात का उस की आश्ना हूँ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कलेजा मुँह को आया और नफ़स करने लगा तंगी

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कहीं वो सूरत-ए-ख़ूबाँ हुआ है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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