सृष्टि Poetry (page 5)

साबित हुआ है गर्दन-ए-मीना पे ख़ून-ए-ख़ल्क़

ग़ालिब

छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना

ग़ालिब

अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल

ग़ालिब

तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले

ग़ालिब

शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है

ग़ालिब

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

ग़ालिब

घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

गो इस सफ़र में थक के बदन चूर हो गया

फ़र्रुख़ जाफ़री

जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है

फ़रहत कानपुरी

अगर मैं चीख़ूँ

फ़रहत एहसास

शबाब-ए-होश कि फ़िल-जुमला यादगार हुई

फ़ानी बदायुनी

किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला

फ़ानी बदायुनी

व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शाएर लोग

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

निसार मैं तेरी गलियों के

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इक़बाल

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दिलदार देखना

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रंग पैराहन का ख़ुशबू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

किस हर्फ़ पे तू ने गोश-ए-लब ऐ जान-ए-जहाँ ग़म्माज़ किया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अदावतों में जो ख़ल्क़-ए-ख़ुदा लगी हुई है

फ़ैसल अजमी

ये भी नहीं कि दस्त-ए-दुआ तक नहीं गया

फ़ैसल अजमी

अदावतों में जो ख़ल्क़-ए-ख़ुदा लगी हुई है

फ़ैसल अजमी

चादर और चार-दीवारी

फ़हमीदा रियाज़

और ख़ुदा ख़ामोश था

फ़हीम शनास काज़मी

हर आश्ना से उस बिन बेगाना हो रहा हूँ

फ़ाएज़ देहलवी

आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी

एहसान दानिश

ख़ुद में खिलते हुए मंज़र से नुमूदार हुआ

दिलावर अली आज़र

कब तक फिरूंगा हाथ में कासा उठा के मैं

दिलावर अली आज़र

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